गजल -"के रै'छ''

के रै'छ मात खाएर हेरें !!
के रै'छ घात पाएर हेरें !!

सुने'थें के के अर्काको बाणी
के रै'छ बात धाएर हेरें !!

उज्यालो अनि साँझ यो कत्ती ?
के रै'छ रात छाएर हेरें !!

देखेको एक्ली "मञ्जरी" मात्र
के रै'छ पात चाएर हेरें !!



के रै'छ मात खाएर हेरें !!
के रै'छ घात पाएर हेरें !!

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